खुशी की बात











{अक्टूबर 6, 2006}   किस्सा कुर्सी का

हाई…

बहुत दिनो के बाद लिख रही हूँ ना. क्या करु समय नही मिला. बहुत बुरी हालत है. 

हुआ युँ कि हमारे अध्यापक महोदय ने हमें यानि कि पुरी क्लास को एक कुर्सी डिजाईन करने के लिए कहा. असल मे एक नहीं कई सारे डिजायन। उन कई डिजायनो में से  हमारे सर कोई एक डिजायन पसन्द करने वाले थे। मैने स्केच तैयार किए। और मेरे उन स्केच किए डिजायनों में से सर को एक कुर्सी पसन्द आ गई. सब ने कहा डिजाईन तो अच्छी है. पेपर पर बनाना था इसलिए मुझे भी मुश्किल नही लगा. पर मुसिबत यहीं से शुरू हुई। मुशिबत यह कि सर ने उसी डिजाईन का मोडल बनाने के लिए कहा। सुनते ही मुँह से निकला हे भगवान, मोडल मर गए। 

 कल का पूरा दिन उसी मे निकल गया। पहले एक घंटा तो सोचने, समझने मे चला गया कि उसे बनाऊँ कैसे। पहले तो पेपर को काटकर बनाकर देखा. जब लगा कि हो जाएगा तो बनाना शुरु किया. एक बजे से साडे आठ बजे तक मै उसी मे लगी हुई थी। करीब पाँच बजे मेरी सहेली घर आई. उसने सोचा की दोनो साथ मिल कर करेगें तो एक दुसरे की मदद से जल्दी हो जाएगा।

शाम सात बजे तक मैरा मोडल तैयार था। कम से कम मुझे तो ऐसा ही लगा। इतने में हमारे छोटे भाईसाहब आए और मोडल को देखा। देखना क्या था मेरी तो बखिया उधेड कर रख दी। सबकुछ गलत सलत। सब गडबड। पुरा रूला दिया मुझे।

सबकुछ सुनाने के बाद जब उनको लगा कि अब थोडा ज्यादा हो गया तो फिर लगे मुझे मनाने और कुर्सी सुधारने। मैने तो आन्दोलन कर दिया कि नहीं बनाना कुछ भी। और इसका फायदा यह हुआ कि अब एक नहीं दोनों बडे भईयाओं ने मेरी सहायता करनी शुरू कि और मोडल जल्द ही बन गया।

तो समझ गए ना हमारी यानि महिलाओं कि ताकत क्या है?



et cetera