खुशी की बात











{सितम्बर 29, 2006}   यह खुशी की बात हैं

हाईशुरुआत अपने परिचय से करती हूँ. मेरा नाम खुशी है, माफ करना खुश्बू है, पर सभी मुझे प्यार से खुशी बुलाते है. इससे पहले आपने मुझे हमारी आवाज सुनो पर सुना हैं. मूलतः सुरत की हूँ. पर पिछ्ले दो सालो से अहमदाबाद मे हूँ, अपनी पढाई के लिए.

मैं ईंटीरियर डिजायनिंग का कोर्स कर रही हूँ.

 

   यहाँ अभी नवरात्री की धूम है. सभी इन दिनो खुब मस्ती करते है. पर कुछ मेरे जैसे भी होते है जो बिना एंजोय किए थक हार के घर वापस आ जाते है. मैं बहूत कम बाहर जाती हूँ. पर कल अपने दोस्तो के जीद के वजह से नवरात्री देखने बाहर गई थी और सबसे पहले पहुँच गई. बाहर इतनी भीड देख कर लगा अन्दर जाना ज्यादा सही होगा. पर हुआ युँ की हम सब एक साथ न मिलने के वजह से मैदान मे एक दूसरे को करीब एक घंटे तक ढूढते रहे. हमारी पौने ग्यारह इसी मे बज गई. बाहर जितनी भीड थी उसे कही ज्यादा अन्दर थी. मैदान मे गरबा करने के लिए अलग से जगह बनाई होती है. हम सब उस जगह गए, पर हमे गरबे करने की जरुरत ही नही पडी, भीड हम से गरबे करवा रही थी. मैंने इतनी भीड कभी नही देखी थी. एक घंटे बाद वहाँ से बाहर आना सही लगा, जैसे-तैसे बाहर आए. खडे-खडे इतने थक गए थे लग रहा था जहाँ है वही बैठ जाए. गरबे की जगह से बाहर आए और बैठने के लिए जगह ढूढने लगे. करीब आधे घंटे तक. इतनी मेहनत के बाद मेरे दोस्तो को भूख लग गई थी, पर मेरी तो मर गयी थी. पर भीड को देख कर किसी का कुछ भी खाने का मन नहीं कर रहा था. घडी देखी तो एक बज रहे थे. करीब तीन घंटे से खडे थे, थक गये थे. अंत मे सभी के विचार एक ही थे घर लौट जाने का. थकावट से चूर, भूखे-प्यासे, बिना मस्ति किए घर लौट आए.

  कल का दिन बहूत बूरा था. आज कही नही जाउँगी. घर बैठना शायद मेरे लिए ज्यादा अच्छा हो. टी.वी देख कर ऐंजोय करुगी.            



et cetera